Tuesday, August 21, 2012
Wednesday, July 25, 2012
आदि शक्ति देवी हिंगलाज के भजनों और स्तुतियों पर आधारित एक शानदार वीडियो
प्यारे मित्रो !
यह बताते हुए मुझे अत्यन्त ख़ुशी है कि आदि शक्ति देवी हिंगलाज
के भजनों और स्तुतियों पर आधारित एक शानदार वीडियो
"जय माँ हिंगलाज" के निर्माण ने अब तेजी पकड़ ली है और शीघ्र ही
यह तैयार हो कर हिंगलाज भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास मैं कर रहा हूँ
-अलबेला खत्री
यह बताते हुए मुझे अत्यन्त ख़ुशी है कि आदि शक्ति देवी हिंगलाज
के भजनों और स्तुतियों पर आधारित एक शानदार वीडियो
"जय माँ हिंगलाज" के निर्माण ने अब तेजी पकड़ ली है और शीघ्र ही
यह तैयार हो कर हिंगलाज भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास मैं कर रहा हूँ
-अलबेला खत्री
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Saturday, March 31, 2012
ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते........
तेरी संगत
मेरी रंगत निखार देती है
पर तेरी मुहब्बत
अक्सर मुसीबत में डाल देती है
क्योंकि ज़माना
ढूंढता है बहाना क़त्ल करने का
हर तरफ़ धोखा
नहीं कोई मौका वस्ल करने का
अपनी हस्ती जुदा है
अपनी मस्ती जुदा है
अपनी बस्ती जुदा है
ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते
ये सागर नहीं जानते हैं, मीना नहीं जानते
ये ऐसे मयफ़रोश हैं जो पीना नहीं जानते
सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे
पहलू में थोड़ा सब्र-ओ-ईमान बाँध लो
सफर लम्बा है, थोड़ा सामान बाँध लो
ग़म जल पड़ेंगे
हम चल पड़ेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
जलगाँव हास्य कवि सम्मेलन में कल अलबेला खत्री की प्रस्तुति है ...सभी मित्र आमंत्रित हैं |
जय हिन्द !
Monday, March 26, 2012
किसलिए आतंक है और मौत का सामान है, आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है
अदावत नहीं
आ
दावत की बात कर
आ
दावत की बात कर
अलगाव की नहीं
आ
लगाव की बात कर
नफ़रत नहीं
तू
उल्फ़त की बात कर
बात कर रूमानियत की
मैं सुनूंगा
बात कर इन्सानियत की
मैं सुनूंगा
मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें
रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें
किसने सिखलाया तुझे संहार कर !
कौन कहता है कि पैदा खार कर !
रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !
आ प्यार कर
आ प्यार कर
आ प्यार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी
ख़ूब कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी
पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन
दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन
किसलिए आतंक है और मौत का सामान है
आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है
कर उजाला ज़िन्दगी में
दूर सब अन्धार कर !
बात मेरी मानले तू
जीत बाज़ी,हार कर !
प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !
पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन
दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन
किसलिए आतंक है और मौत का सामान है
आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है
कर उजाला ज़िन्दगी में
दूर सब अन्धार कर !
बात मेरी मानले तू
जीत बाज़ी,हार कर !
प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !
प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !
- अलबेला खत्री
जय हिन्द !
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छन्दमुक्त काव्य
Thursday, March 15, 2012
इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है.........
खरगोश की उछाल
मृग की कुलांच
बाज़ की उड़ान
शावक की दहाड़
शबनम की चादर
गुलाब की महक
पीपल का पावित्र्य
तुलसी का आमृत्य
निम्बू की सनसनाहट
अशोक की लटपटाहट
_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय
अब तो
आदमी का ख़ून
बाज़ार की मंहगाई
खादी का भ्रष्टाचार
संसद का हंगामा
ग्लोबलवार्मिंग
प्रदूषण
और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर
दृष्टि जहाँ तक जाती है,
हलाहल है
इसलिए आज कविता नहीं,
कोलाहल है
हास्यकवि अलबेला खत्री |
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Wednesday, March 14, 2012
लोग नमक घिसने लगते हैं.........
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Tuesday, March 13, 2012
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान .........
आज मुझे सपने में आया सपना एक महान
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान
मैंने देखा पुलिसकर्मियों में विनम्र स्वभाव
मैंने देखा सस्ते होगये फल-सब्ज़ी के भाव
मैंने देखा रेलों में कोई धक्कम-पेल नहीं है
मैंने देखा किसी शहर में कोई जेल नहीं है
भ्रष्टाचारी लोग कर चुके ख़ुद ही आत्म-समर्पण
स्विस बैंकों से ला-ला कर धन किया देश को अर्पण
सोने के सिक्के चलते और चलें चांदी के नोट
युवकों ने चड्डी उतार कर, पहन लिए लंगोट
व्यसन और फ़ैशन से दूरी रखना मान लिया है
काला बाज़ारी नहीं करेंगे, सबने ठान लिया है
नहीं मिलावट मिली कहीं पर, शुद्ध है सब सामान
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान
सिर्फ़ एक टी वी चैनल और सिर्फ़ एक अखबार
क्रिकेट मैच भी हो पाता है साल में बस इक बार
क्षण-क्षण का उपयोग हो रहा मानवता के हित में
अय्याशी और अनाचार अब नहीं किसी के चित में
काव्य-मंचों पर मौलिक कविताओं का युग आया है
साहित्य और संस्कृति का परचम घर-घर फहराया है
मल्लिकाओं ने साड़ी पहनने का ऐलान किया है
अमिताभ बच्चन ने ख़ुद को बूढ़ा मान लिया है
पेप्सी-कोक की जगह दूध के विज्ञापन दिखते हैं
सलीम-जावेद फिर से जोड़ी बन, फ़िल्में लिखते हैं
अब रोज़ाना लड़ते नहीं हैं शाहरुख और सलमान
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान
भ्रूणहत्याएं बन्द हो गईं, दहेज़ प्रथा भी बन्द
शोषण से हुई मुक्त नारियां, करती हैं आनन्द
आतंकवादी रक्तदान को लाइन में खड़े हुए हैं
चोरों ने चोरी छोड़ी, घर खुल्ले पड़े हुए हैं
मदिरा-गुटखा कम्पनियों पर लटक रहे हैं ताले
नदियाँ तो नदियाँ, शहरों में साफ़ हो गये नाले
चौबीस घंटे चालू रहता फैक्ट्रियों में काम
रंगदारी और लूटपाट का होगया काम तमाम
दुनिया भर ने फिर से माना भारत को उस्ताद
चारों तरफ़ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ, नहीं कहीं अवसाद
घुटनों के बल खड़ा हमारे आगे पाकिस्तान
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान
__अलबेला खत्री
![]() |
हास्यकवि व गीतकार अलबेला खत्री प्रख्यात फिल्म अभिनेता -निर्माता स्व. दादा कोंडके के साथ मराठी फिल्म येऊ का घरात ? के हिंदी संस्करण 'चिट्ठी आई है' की डबिंग के अवसर पर एम्पायर स्टूडियो मुंबई में .... |
जय हिन्द !
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मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं
सियारी खाल की बदबू हवा से जान लेता हूं
सियासत वालों को मैं दूर से पहचान लेता हूँ
भुवन में हो कोई बाधा तो आए रोक ले मुझको
वो पूरा करके रहता हूं जो मन में ठान लेता हूं
मेरे गंगानगर में नहर है पंजाब से आती
इसी कारण मैं पीने से प्रथम जल छान लेता हूं
ये सब इक कर्ज़ अदाई है, न बेटा है, न भाई है
मगर तुम कह रहे हो तो चलो मैं मान लेता हूं
मैं अपने घर का चूल्हा अपने ईधन से जलाता हूं
न तो अनुदान मिलता है, न मैं ऐहसान लेता हूं
मेरा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-मुल्क़ लासानी है सच मानो
मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं
प्रिये तुम जा रही हो तो मेरे सब लाभ ले जाओ
मैं अपने सर पे 'अलबेला' सभी नुक़सान लेता हूं
हास्यकवि अलबेला खत्री दक्षिण गुजरात चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स -सूरत के अध्यक्ष से सम्मान स्वीकारते हुए |
जय हिन्द !
Monday, March 12, 2012
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं.............
नम्रता यदि ज्ञान से कुछ कम नहीं
तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं
आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो
आदमी भगवान से कुछ कम नहीं
काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है
वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
![]() |
hasyakavi albela khatri in mumbai |
जय हिन्द !
Wednesday, February 29, 2012
जहाँ खादी वाले चूस रहे हैं आज़ादी का गन्ना ....................
पैरोडी : इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया ...
जहाँ गाँव है घायल,
नगर है ज़ख्मी,
महानगर भी दुखिया
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया ...
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया
जहाँ खादी वाले चूस रहे हैं आज़ादी का गन्ना
जहाँ गुण्डों के हिस्से आता है देश का नेता बनना
जहाँ रक्षक ही भक्षक बन बैठे
रौंद रहें हैं कलियाँ
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया .....
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया
जहाँ आम आदमी के घर में सब्ज़ी आनी भी मुश्किल
घी - दूध - दही की बात तो छोड़ो, है पानी भी मुश्किल
जहाँ आमदनी है आठ आने
और खर्च है आठ रुपैया
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया.....
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया
कुछ गद्दारों को देख, मुझे होती है ख़ूब हैरानी
जब क्रिकेट में हम जीतें उनकी मर जाती है नानी
पर टीम हमारी हारे तो वे
ख़ूब मनाते खुशियां
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया...
इट हैप्पन्ज ओनली इन इण्डिया
जय हिन्द !
Monday, February 27, 2012
लाखों मिल जाएंगे भुजंग मेरे देश में.....
हाकिम को घूस दे के
अपना बना लो, यही
काम करवाने का है ढंग मेरे देश में
धनी लोगों, वासना के
लोलुपों को रात दिन
बेचती गरीबी अंग-अंग मेरे देश में
क्षेत्र सम्प्रदायों के
असीम हैं, अनन्त हैं व
बन्दगी के दायरे हैं तंग मेरे देश में
ढूंढना जो चाहो ढूंढ़ो,
आदमी मिले न मिले,
लाखों मिल जाएंगे भुजंग मेरे देश में
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
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Sunday, February 26, 2012
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं....
मधुर-मधुर, मीठा-मीठा और मन्द-मन्द मुस्काते हैं
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं
बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है
मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं
उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में
शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं
रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी
कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं
जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं
बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है
मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं
उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में
शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं
रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी
कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं
जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं
![]() |
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
Friday, February 24, 2012
सच मानो जब तक पीर का काग़ज़ न हो..........
रात न ढले तो कभी
भोर नहीं होती बन्धु
सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है
लोहू तो निकाल सकता
तेरे पाँव में से
कांच से मगर घाव कम नहीं होता है
जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है
सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है
![]() |
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
कमाल किया......... किताब नहीं लिखी, बवाल किया
क़िताब लिखो
पर ज़रूरी नहीं
पर ज़रूरी नहीं
ख़राब लिखो
ख़राब लिखो
पर किसने कहा
किताब लिखो
कमाल किया
किताब नहीं लिखी
बवाल किया
एहसास है ?
भूगोल नहीं है ये
इतिहास है
इतिहास में
छेड़ नहीं करते
परिहास में
जस ले बैठे
तरने की चाह में
बस ले बैठे
पारा गिरा है ?
ना रे ना भाजपा का
तारा गिरा है
राजधानी में
गिर गई उनकी
भैंस पानी में
सियासी येड़ो !
भूत बन जाओगे
जय हिन्द !
अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई...........
ऐ मेरी ज़िन्दगी, तू कहाँ खो गई ?
शायरी भी मेरी, अब जवां हो गई
जल रही है ज़मीं, जल रहा आसमां
क़ायनात-ए-तमाम पुर-तवां हो गई
हर शहर हर मकां मौतगाह बन गया
हर निगाहो - नज़र खूंफ़िशां हो गई
तौबा-तौबा ख़ुदा ! लुट गए - लुट गए
आज घर- घर यही दास्ताँ हो गई
ईश्वर ! रहम कर हाल पे हिन्द के
रोते - रोते कलम बेज़ुबां हो गई
जल न जाऊं कहीं 'अलबेला' डर गया
अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई
शायरी भी मेरी, अब जवां हो गई
जल रही है ज़मीं, जल रहा आसमां
क़ायनात-ए-तमाम पुर-तवां हो गई
हर शहर हर मकां मौतगाह बन गया
हर निगाहो - नज़र खूंफ़िशां हो गई
तौबा-तौबा ख़ुदा ! लुट गए - लुट गए
आज घर- घर यही दास्ताँ हो गई
ईश्वर ! रहम कर हाल पे हिन्द के
रोते - रोते कलम बेज़ुबां हो गई
जल न जाऊं कहीं 'अलबेला' डर गया
अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई
hasyakavi albela khatri - surat |
जय हिन्द !
Thursday, February 23, 2012
काग़ज़ों में हो रहे विकास मेरे देश में.......
इक मुख यदि है
गुलाब जैसा महका तो
सैकड़ों के चेहरे उदास मेरे देश में
एक के शरीर पे
रेमण्ड का सफ़ारी है तो
पांच सौ पे उधड़ा लिबास मेरे देश में
काम सारे हो रहे हैं
कुर्सी की टांगों नीचे
काग़ज़ों में हो रहे विकास मेरे देश में
दूध है जो महंगा तो
पीयो ख़ूब सस्ता है
आदमी के ख़ून का गिलास मेरे देश में
hasyakavi albela khatri -surat |
जय हिन्द !
चपल चन्चल चमकती दामिनी जब कड़कड़ाती है, तुम्हारी याद आती है
अरुण की लालिमा में जब गगन से ओस गिरती है
उजाले की किरण जब इस धरा पर पांव धरती है
हवा में हर दिशा जब मरमरी आभा बिखरती है
सरोवर में कमल कलिकायें जिस दम खिलखिलाती हैं
तुम्हारी याद आती है
यदि योगी तपस्वी साधु सिद्ध जब ध्यान करते हैं
गुरूद्वारे गुरूवाणी का जब गुणगान करते हैं
हरम पे चढ़ के बांगी जिस घड़ी अज़ान करते हैं
शिवाले में स्तुति की घंटियां जब घनघनाती हैं
तुम्हारी याद आती है
गली में जब मुरग़ की कुकड़ कूं आवाज़ आती है
निकल कर घोंसले से चिडि़या जिस दम चहचहाती है
मयुरी अपने पिव के संग जब ठुमका लगाती है
मधुर कंठी कोयलिया जब विरह के गीत गाती है
तुम्हारी याद आती है
घटा घनघोर चारों ओर जब अम्बर में घिरती है
नगाड़ों की तरह जब बदलियां गड़-गड़ गरज़ती हैं
रिदम के साथ जब रिमझिम झमाझम बूंदे गिरती हैं
चपल चन्चल चमकती दामिनी जब कड़कड़ाती है
तुम्हारी याद आती है
शबे-पूनम में पीला चॉंद जिस दम जगमगाता है
क्षितिज में एक नन्हा तारा ध्रुव जब मुस्कुराता है
सितारा शुक्र जब शफ्फ़ाक होकर चमचमाता है
गगन में जब कोई आकाश-गंगा झिलमिलाती है
तुम्हारी याद आती है
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
Tuesday, February 21, 2012
क्यों अँधेरे में बैठे हो 'अलबेला' तुम ? अब तो शमा जलाने का वक़्त आ गया
तेग़-ओ-खंजर उठाने का वक़्त आ गया
लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया
सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक़्त आ गया
ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा
मुल्क़ में अम्न लाने का वक़्त आ गया
क़त्ल-ओ-गारत के साये हटाने चलें
अब तो मौसम सुहाने का वक़्त आ गया
क्यों अँधेरे में बैठे हो 'अलबेला' तुम ?
अब तो शमा जलाने का वक़्त आ गया
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
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आँख किसी की रोते-रोते जब सहसा मुस्का जाती
{ कविता की तीन अवस्थाएं }
शब्द-शब्द जब मानवता के हितचिन्तन में जुट जाता है
तम का घोर अन्धार भेद कर दिव्य ज्योति दिखलाता है
जब भीतर की उत्कंठायें स्वयं तुष्ट हो जाती हैं
अन्तर में प्रज्ञा की आभा हुष्ट-पुष्ट हो जाती है
अमृत घट जब छलक उठे
बिन तेल जले जब बाती
तब कविता उपकृत हो जाती
अमिट-अक्षय-अमृत हो जाती
देश काल में गूंज उठे जब कवि की वाणी कल्याणी रे
स्वाभिमान का शोणित जब भर देता आँख में पाणी रे
जीवन के झंझावातों पर विजय हेतु संघर्ष करे
शोषित व पीड़ित जन गण का स्नेहसिक्त स्पर्श करे
आँख किसी की रोते-रोते
जब सहसा मुस्का जाती
तब कविता अधिकृत हो जाती
साहित्य में स्वीकृत हो जाती
क्षुद्र लालसा की लपटें जब दावानल बन जाती हैं
धर्म कर्म और मर्म की बातें धरी पड़ी रह जाती हैं
रिश्ते-नाते,प्यार-मोहब्बत सभी ताक पर रहते हैं
स्वेद-रक्त की जगह रगों में लालच के कण बहते हैं
त्याग तिरोहित हो जाता
षड्यन्त्र सृजे दिन राती
तब कविता विकृत हो जाती
सम्वेदना जब मृत हो जाती
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
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तेग़-ए-नज़र-ए-बशर की अब क्या है ख्वाहिश देखिये...........
फ़ित्न-ए- दौरां में हर लम्हा हवादिस देखिये
अब्र से बरसे है हर दम बर्क़ बारिश देखिये
मुज़्तरिब हो, रो पड़ा है हक़ भी हाल-ए-दहर पर
आदमी का हर कदम है एक साजिश देखिये
इस तरफ़ से उस तरफ़ रक्स-ए-क़यामत हो रहा
उस तरफ़ से इस तरफ़ बिखरी है आतिश देखिये
हर दरो-दीवार पर है दाग़-ए-खून-ए-हुर्रियत
गर्दिश-ए-आलम की ये संगीन क़ाविश देखिये
खौफ़ क्या 'अलबेला' तुमको ख़ंजर-ओ-शमशीर का
तेग़-ए-नज़र-ए-बशर की अब क्या है ख्वाहिश देखिये
![]() |
हास्यकवि अलबेला खत्री ग़ज़ल के पाठकों की प्रतीक्षा में..... |
जय हिन्द !
Monday, February 20, 2012
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं...........
नम्रता यदि ज्ञान से कुछ कम नहीं
तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं
आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो
आदमी भगवान से कुछ कम नहीं
काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है
वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
![]() |
हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ श्याम सखा श्याम के नेतृत्व में 18 फरवरी की शाम पानीपत के भारतीय जैन मिलन ने माउन्ट लिट्रा स्कूल में रंगारंग हास्यकवि-सम्मेलन संपन्न हुआ |
Thursday, February 16, 2012
प्रेम के फूल खिलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा ............
ज़िन्दगी इक इल्म है, सुपर डुपर फ़िल्म है
देखूँगा,दिखलाऊंगा ....गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी असहाय है, व्यय अधिक कम आय है
फिर भी काम चलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी इक कीर है, सुख व दु:ख ज़ंजीर है
तोड़ इसे उड़ जाऊँगा...गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी अभिषेक है, मन्दिर- मस्जिद एक हैं
सब पर शीश झुकाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी शृंगार है, दोस्ती है ..प्यार है ...
प्रेम के फूल खिलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी अनमोल है, मेरा जो भी रोल है
हँसते हुए निभाऊंगा , गीत ख़ुशी के गाऊंगा
ज़िन्दगी पहचान है, सब उसकी सन्तान हैं
बात यही दोहराऊंगा , गीत ख़ुशी के गाऊंगा
जय हिन्द !
Wednesday, February 15, 2012
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है.............
ग़मगुसारों की निगाहें तीर सी क्यूँ है
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
ला पिलादे मयफ़िशां अन्दाज़ ही से
दिख रही मय आज मुझको शीर सी क्यूँ है
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
जय हिन्द !
Tuesday, February 14, 2012
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
जय हिन्द !
Monday, February 13, 2012
ज़ाफ़रान की सुगन्ध है साँसों में आपकी
गुलकन्द है मकरन्द है साँसों में आपकी
ज़ाफ़रान की सुगन्ध है साँसों में आपकी
दुनिया में तो भरे हैं ज़ख्मो-रंजो-दर्दो-ग़म
आह्लाद और आनन्द है साँसों में आपकी
कितनी है गीतिकाएं,ग़ज़लें और रुबाइयां
कितने ही गीतो-छन्द हैं साँसों में आपकी
कहीं और ठौर ही नहीं है जाऊंगा कहाँ ?
मेरे तो प्राण बन्द हैं साँसों में आपकी
ज़ाफ़रान की सुगन्ध है साँसों में आपकी
दुनिया में तो भरे हैं ज़ख्मो-रंजो-दर्दो-ग़म
आह्लाद और आनन्द है साँसों में आपकी
कितनी है गीतिकाएं,ग़ज़लें और रुबाइयां
कितने ही गीतो-छन्द हैं साँसों में आपकी
कहीं और ठौर ही नहीं है जाऊंगा कहाँ ?
मेरे तो प्राण बन्द हैं साँसों में आपकी
- अलबेला खत्री
जय हिन्द !
Sunday, February 12, 2012
बेटियां नज़र का नूर होती हैं................
बेटियां आँगन की महक होती हैं
बेटियां चौंतरे की चहक होती हैं
बेटियां सलीका होती हैं
बेटियां शऊर होती हैं
बेटियों की नज़र उतारनी चाहिए
क्योंकि बेटियां नज़र का नूर होती हैं
इसीलिए
बेटी जब दूर होती हैं बाप से
तो मन भर जाता संताप से
डोली जब उठती है बेटी की
तो पत्थरदिलों के दिल भी टूट जाते हैं
जो कभी नहीं रोता
उसके भी आँसू छूट जाते हैं
बेटियां ख़ुशबू से भरपूर होती हैं
उड़ जाती हैं तब भी सुगन्ध नहीं जाती
क्योंकि बेटियां कपूर होती हैं
बेटी घर की लाज है
बेटी से घर है समाज है
बेटी दो दो आँगन बुहारती है
बेटियां दो दो घर संवारती हैं
बेटी माँ बाप की साँसों का सतत स्पन्दन है
बेटी सेवा की रोली और मर्यादा का चन्दन है
बेटी माँ का दिल है, बाप के दिल की धड़कन है
बेटी लाडली होती है सब की
बेटियां सौगात होती है रब की
बेटे ब्याह होने तक बेटे रहते हैं
लेकिन बेटी आजीवन बेटी रहती हैं
बेटियों की गरिमा पहचानता हूँ
बेटियों का समर्पण मैं जानता हूँ
इसलिए बेटी को मैं पराया नहीं
अपितु अपना मूलधन मानता हूँ
जय हिन्द !
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Saturday, February 11, 2012
संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया
जिस प्रकार
हवा
हाथों के इशारे नहीं समझती
आग
आँखों से डरा नहीं करती
पानी
आँचल में क़ैद नहीं हो सकता
अम्बर
किसी एक का हो नहीं सकता
वसुधा
अपनी ममता त्याग नहीं सकती
वो
सिर्फ़ देना जानती है, मांग नहीं सकती
उसी प्रकार
मनुष्य भी
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
परन्तु इसने निराश किया
अतः परिणाम बहुत ही मारक हो गया
संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया
हवा
हाथों के इशारे नहीं समझती
आग
आँखों से डरा नहीं करती
पानी
आँचल में क़ैद नहीं हो सकता
अम्बर
किसी एक का हो नहीं सकता
वसुधा
अपनी ममता त्याग नहीं सकती
वो
सिर्फ़ देना जानती है, मांग नहीं सकती
उसी प्रकार
मनुष्य भी
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
परन्तु इसने निराश किया
अतः परिणाम बहुत ही मारक हो गया
संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया
![]() |
हास्यकवि अलबेला खत्री आयोजित लाफ़्टर शो |
जय हिन्द !
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Friday, February 10, 2012
एक गोरी सांवरी सी................
एक गोरी सांवरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
एक छोरी बावरी सी मेरे गीतों की फ़ैन हो गई
पनघट जाती-जाती गाए
जल भर लाती-लाती गाए
आती गाए, जाती गाए
सखियों से बतियाती जाए
पल में सौ बल खाती जाए
गीत वो मेरे गाती जाए
कितनी बेचैन हो गई, कितनी बेचैन हो गई ...
रे मेरे गीतों की ....
उसकी छैल छबीली आँखें
चंचल आँखें , कटीली आँखें
बिजली सी चमकीली आँखें
मोटी-मोटी मछीली आँखें
नीली और नशीली आँखें
आबे-हया से गीली आँखें
तीर्थ उज्जैन हो गईं, तीर्थ उज्जैन हो गईं ...
रे मेरे गीतों की ...
जब जब मेरी याद सताये
उसकी मोहब्बत अश्क़ बहाये
तन घबराये, मन घबराये
उसका अखिल यौवन घबराये
जग-जग सारी रैन बिताये
पल दो पल भी नींद न आये
रातें कुनैन हो गईं, उसकी रातें कुनैन हो गईं
रे मेरे गीतों की ...
जय हिन्द !
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Thursday, February 9, 2012
कविता और मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती.........
आशा लिखूं
तो आशा है
निराशा लिखूं
तो निराशा है
मुझ पर
किसी इक भाषा का
बन्धन क्यों हो ?
हर भाषा
मेरी भाषा है
कविता और मोहब्बत
सोच कर
नहीं हो सकती
होने के बाद
सोचा जाता है
भाषा का वस्त्र पहनाया जाता है
और
सिलसिला आगे बढ़ाया जाता है
__हो सकता है मैं गलत सोचता होऊं
लेकिन मेरा दिल कहता है
बन्धन जब सारे टूटते हैं
पूर्वाग्रह जब पीछे छूटते हैं
तभी कवि की हृदयमही से
कविता के झरने फूटते हैं
जय हिन्द !
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Wednesday, February 8, 2012
चाँदी का जूता खाने के लिए अपना ज़मीर बेच डालूं
हाँ हाँ
मैंने बेचा है
बेचा है लोहू जिगर का
बेचा है नूर नज़र का
लेकिन
ईमान नहीं बेचा
मैं खाक़ हूँ ...पर पाक हूँ
मेहनतकशी की नाक हूँ
तुम सा नहीं जो वतन को
शान्ति-चैन-ओ-अमन को
माँ भारती के बदन को
पीड़ितजनों के रुदन को
कुर्सी की खातिर
गैरों के हाथ बेच डालूँ
सत्ता के तलवे चाटूं
और चाँदी का जूता खाने के लिए
अपना ज़मीर बेच डालूं
अरे भ्रष्टाचारियों !
मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना
वो भी अपना !
और अपना ही वक़्त बेचता हूँ
पेट भराई के लिए
लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता
किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता
क्योंकि मैं
मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !
गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !
hasyakavi albela khatri's new creation "HE HANUMAN BACHALO !" |
जय हिन्द !
Tuesday, February 7, 2012
जब कभी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाओगी प्रिये...........
आपके भी ओंठ इक दिन, गीत गायेंगे मेरे
नींद होगी आपकी पर, ख़्वाब आयेंगे मेरे
आपके भी...
जागेगी जिस दम जवानी, जिस्म लेगा करवटें
रात भर तड़पोगी, बिस्तर पर पड़ेंगी सलवटें
आँखें होंगी आपकी पर
आँसू आयेंगे मेरे
आपके भी...
जब कभी दर्पण में देखोगी ये कुन्दन सा बदन
ख़ूब इतराओगी इस मासूमियत पर मन ही मन
मद तो होगा आप पे, पग
डगमगायेंगे मेरे
आपके भी...
राह चलते आपको गर लग गई ठोकर कभी
ख़ाक़ कर दूंगा जला कर, राह के पत्थर सभी
पांव होंगे आपके पर
घाव पायेंगे मेरे
आपके भी...
जब कभी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाओगी प्रिये
जब शबे-फुर्क़त में दिल मचलेगी साथी के लिए
आप अपने आप को तब
पास पायेंगे मेरे
आपके भी...
हास्यकवि अलबेला खत्री अपनी मस्ती में मस्त... |
जय हिन्द !
Saturday, February 4, 2012
तुम कहो तो चाँद पर झूला लगा दूँ , बादलों की गोद में बिस्तर बिछा दूँ
तुम कहो तो मैं सितारे तोड़ लाऊं
तोड़ कर घर तक तुम्हारे छोड़ आऊं
तुम कहो तो मैं समन्दर को सुखा दूँ
उसका सारा खारापन खा कर पचा दूँ
तुम कहो तो बेर का हलवा बना दूँ
सारा हलवा तेरी कुतिया को खिलादूं
तुम कहो तो हिमशिखर पर घर बनालूँ
और सूरज पर नया दफ़्तर बनालूँ
तुम कहो तो चाँद पर झूला लगा दूँ
बादलों की गोद में बिस्तर बिछा दूँ
तुम कहो तो दिल्ली को नीलाम कर दूँ
आगरे का ताज तेरे नाम कर दूँ
इससे पहले कि प्रिये ! मैं जाग जाऊं
खटिया से उठ कर कहीं पर भाग जाऊं
जो कराना है करालो.............
जो कराना है करालो.............
जो कराना है करालो.............
जय हिन्द !
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तो कुछ ऐसे दीवाने हैं कि बस पल भर में पाया है
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Friday, January 27, 2012
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे
तेरी संगत
मेरी रंगत निखार देती है
पर तेरी मुहब्बत
अक्सर मुसीबत में डाल देती है
क्योंकि ज़माना
ढूंढता है बहाना क़त्ल करने का
हर तरफ़ धोखा
नहीं कोई मौका वस्ल करने का
अपनी हस्ती जुदा है
अपनी मस्ती जुदा है
अपनी बस्ती जुदा है
ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते
ये सागर नहीं जानते हैं, मीना नहीं जानते
ये ऐसे मयफ़रोश हैं जो पीना नहीं जानते
सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे
पहलू में थोड़ा सब्र-ओ-ईमान बाँध लो
सफर लम्बा है, थोड़ा सामान बाँध लो
ग़म जल पड़ेंगे
हम चल पड़ेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
![]() |
सूरत में अमर शहीदों के नाम एक एक विराट कार्यक्रम में अलबेला खत्री |
जय हिन्द !
Thursday, January 26, 2012
वो आज उतरा है भीतर मेरी टोह लेने, मैं सहमा खड़ा हूँ फिर इम्तेहान देने
महक ये
उसी के मन की है
जो चली आ रही है
केश खोले
दहक ये
उसी बदन की है
जो दहका रही है
हौले हौले
महल मोहब्बत का आज सजा संवरा है
आग भड़कने का आज बहुत खतरा है
डर है कहीं आज
खुल न जाए राज़
क्योंकि मैं आज थोड़ा सुरूर में हूँ
उसी की मोहब्बत के गुरूर में हूँ
जो है मेरा अपना...........
सदा सदा से ..........
मेरा मुर्शिद
मेरा राखा
मेरा पीर
मेरा रब
मेरा मालिक
मेरा सेठ
मेरा बिग बोस
वो आज उतरा है भीतर मेरी टोह लेने
मैं सहमा खड़ा हूँ फिर इम्तेहान देने
जानते हुए कि फिर रह जाऊंगा पास होने से
आम फिर महरूम रह जाएगा ख़ास होने से
लेकिन मन लापरवाह है
क्योंकि वो शहनशाह है
लहर आएगी, तो मेहर कर देगा
मुझे भी अपने नूर से भर देगा
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है
सांपला ब्लोगर्स मीट में एकत्रित हुए ब्लोगर्स मित्रों के साथ फ़ुर्सत के क्षण |
जय हिन्द !
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