मधुर-मधुर, मीठा-मीठा और मन्द-मन्द मुस्काते हैं
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं
बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है
मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं
उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में
शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं
रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी
कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं
जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सलोने हमें रात भर आते हैं
बस्ती-बस्ती बगिया-बगिया,परबत-परबत झूमे है
मस्त पवन के निर्मल झोंके प्रीत के गीत सुनाते हैं
उभरा है तन पे यौवन ज्यों चमके बिजली बादल में
शीतल शबनम के क़तरे तन-मन में आग लगाते हैं
रात चाँदनी में नदिया की सैर कराता जब मांझी
कई तलातुम तुझ जैसे साहिल की याद दिलाते हैं
कुछ और नहीं हैं 'अलबेला' ये तो यादों के पैक़र हैं
जो विरह वेदना के ज़ख्मों को जब देखो सहलाते हैं
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
जय हिन्द !
बहुत अच्छा ..!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in