बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
जय हिन्द !
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
ReplyDeleteअन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
अपनी अपनी रोटी सेको..अपना घर यूं भरलो आज।
कल न जाने कहाँ खो जायें,बनजायें अनजानें लोग...
'पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है .'
ReplyDelete- हाँ ,अब तो ऐसा ही लगता है कि साँस लेने को स्वच्छ हवा भी खरीदनी पड़ेगी !
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteपानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
ReplyDeleteभटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
कथ्य और कलात्मकता के स्तर पर बहतरीन ग़ज़ल मुहावरों का सजीव प्रयोग किया है आपने .मुबारक .
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-791:चर्चाकार-दिलबाग विर्क