तेग़-ओ-खंजर उठाने का वक़्त आ गया
लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया
सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक़्त आ गया
ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा
मुल्क़ में अम्न लाने का वक़्त आ गया
क़त्ल-ओ-गारत के साये हटाने चलें
अब तो मौसम सुहाने का वक़्त आ गया
क्यों अँधेरे में बैठे हो 'अलबेला' तुम ?
अब तो शमा जलाने का वक़्त आ गया
हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत |
Waah... Waaah... Waaaah... Bahut zabardast likha hai...
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