Wednesday, February 8, 2012

चाँदी का जूता खाने के लिए अपना ज़मीर बेच डालूं




 हाँ हाँ

मैंने बेचा
है


बेचा है लोहू जिगर का

बेचा है नूर नज़र का

लेकिन

ईमान नहीं बेचा

मैं खाक़ हूँ ...पर पाक हूँ

मेहनतकशी की नाक हूँ

तुम सा नहीं जो वतन को

शान्ति-चैन-ओ-अमन को

माँ भारती के बदन को

पीड़ितजनों के रुदन को

कुर्सी की खातिर

गैरों के हाथ बेच डालूँ

सत्ता के तलवे चाटूं

और चाँदी का जूता खाने के लिए

अपना ज़मीर बेच डालूं


अरे भ्रष्टाचारियों !

मैं बेचता हूँ सिर्फ़ पसीना

वो भी अपना !

और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

पेट भराई के लिए

लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

क्योंकि मैं

मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !

गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं !


hasyakavi albela khatri's new creation "HE HANUMAN BACHALO !"

जय हिन्द !

2 comments:

  1. हे हनुमान बचा लो...

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  2. चाँदी का जूता खाने के लिए अपना ज़मीर बेच डालूं


    और अपना ही वक़्त बेचता हूँ

    पेट भराई के लिए

    लेकिन इन्सानियत नहीं बेचता

    किसी भी क़ीमत पर नहीं बेचता

    क्योंकि मैं

    मज़दूर हूँ .....लीडर नहीं !

    गरीब हूँ ...काफ़िर नहीं

    Bahut khoob !

    ReplyDelete

अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है