Thursday, February 16, 2012

प्रेम के फूल खिलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा ............




ज़िन्दगी इक इल्म है, सुपर डुपर फ़िल्म है
देखूँगा,दिखलाऊंगा ....गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी असहाय है, व्यय अधिक कम आय है
फिर भी काम चलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी इक कीर है, सुख व दु:ख ज़ंजीर है
तोड़ इसे उड़ जाऊँगा...गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी अभिषेक है, मन्दिर- मस्जिद एक हैं
सब पर शीश झुकाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी शृंगार है, दोस्ती है ..प्यार है ...
प्रेम के फूल खिलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी अनमोल है, मेरा जो भी रोल है
हँसते हुए निभाऊंगा , गीत ख़ुशी के गाऊंगा

ज़िन्दगी पहचान है, सब उसकी सन्तान हैं
बात यही दोहराऊंगा , गीत ख़ुशी के गाऊंगा
 
 जय हिन्द !
अलबेला खत्री 
albela khatri in sanpla kavi-sammelan org.by anter sohel

 

1 comment:

  1. जिन्दगी के भिन्न-भिन्न रूप
    और उन सब में संघर्ष का
    फौलादी हौसला, सराहनीय
    अभिव्यक्ति।
    सुन्दर रचना।
    साधुवाद।
    आनन्द विश्वास

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है