Saturday, February 4, 2012

तुम कहो तो चाँद पर झूला लगा दूँ , बादलों की गोद में बिस्तर बिछा दूँ


 

तुम कहो तो मैं सितारे तोड़ लाऊं

तोड़ कर घर तक तुम्हारे छोड़ आऊं


तुम कहो तो मैं समन्दर को सुखा दूँ

उसका सारा खारापन खा कर पचा दूँ


तुम कहो तो बेर का हलवा बना दूँ

सारा हलवा तेरी कुतिया को खिलादूं


तुम कहो तो हिमशिखर पर घर बनालूँ

और सूरज पर नया दफ़्तर बनालूँ


तुम कहो तो चाँद पर झूला लगा दूँ

बादलों की गोद में बिस्तर बिछा दूँ


तुम कहो तो दिल्ली को नीलाम कर दूँ

आगरे का ताज तेरे नाम कर दूँ


इससे पहले कि प्रिये ! मैं जाग जाऊं

खटिया से उठ कर कहीं पर भाग जाऊं


जो कराना है करालो.............

जो कराना है करालो.............

जो कराना है करालो.............



जय हिन्द !

2 comments:

  1. सही ठोंका ......दोस्त फिर क्या किया ....करवाया कुछ ? हाहहाहा ...काव्य मुस्कराया जब पाठक भी मुस्कराया ...वैसे ये कविता स्टेज पर पढ़ने वाली है .....अपनी आवाज़ भी इस ब्लॉग में शामिल करिये .....

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  2. फिलहाल तो बस खटिया का पाया ठीक करवा लो... चरर चरर करती है

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है