आशा लिखूं
तो आशा है
निराशा लिखूं
तो निराशा है
मुझ पर
किसी इक भाषा का
बन्धन क्यों हो ?
हर भाषा
मेरी भाषा है
कविता और मोहब्बत
सोच कर
नहीं हो सकती
होने के बाद
सोचा जाता है
भाषा का वस्त्र पहनाया जाता है
और
सिलसिला आगे बढ़ाया जाता है
__हो सकता है मैं गलत सोचता होऊं
लेकिन मेरा दिल कहता है
बन्धन जब सारे टूटते हैं
पूर्वाग्रह जब पीछे छूटते हैं
तभी कवि की हृदयमही से
कविता के झरने फूटते हैं
जय हिन्द !
सही कहा जी आपने
ReplyDeleteकविता और मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती .....
बहुत बढ़िया!
ReplyDelete--
आप अच्छा लिखते हैं!
बढियां ..वाकई मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती।
ReplyDeletebahut hi badhiya aur sundar... simple and beautiful :)
ReplyDelete