Thursday, February 9, 2012

कविता और मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती.........



 
आशा लिखूं
तो आशा है
निराशा लिखूं
तो निराशा है

मुझ पर
किसी इक भाषा का
बन्धन क्यों हो ?

हर भाषा
मेरी भाषा है

कविता और मोहब्बत
सोच कर
नहीं हो सकती
होने के बाद
सोचा जाता है
भाषा का वस्त्र पहनाया जाता है
और
सिलसिला आगे बढ़ाया जाता है

__हो सकता है मैं गलत सोचता होऊं
लेकिन मेरा दिल कहता है

बन्धन जब सारे टूटते हैं
पूर्वाग्रह जब पीछे छूटते हैं
तभी कवि की हृदयमही से
कविता के झरने फूटते हैं


जय हिन्द !

4 comments:

  1. सही कहा जी आपने
    कविता और मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती .....

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  2. बहुत बढ़िया!
    --
    आप अच्छा लिखते हैं!

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  3. बढियां ..वाकई मोहब्बत सोच कर नहीं हो सकती।

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  4. bahut hi badhiya aur sundar... simple and beautiful :)

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है