ग़मगुसारों की निगाहें तीर सी क्यूँ है
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
ला पिलादे मयफ़िशां अन्दाज़ ही से
दिख रही मय आज मुझको शीर सी क्यूँ है
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
जय हिन्द !
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
ReplyDeleteहम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
क्या कहने!!!