Tuesday, February 14, 2012

कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग





बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग

पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग

और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग

कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग






जय हिन्द !

5 comments:

  1. कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
    अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
    अपनी अपनी रोटी सेको..अपना घर यूं भरलो आज।

    कल न जाने कहाँ खो जायें,बनजायें अनजानें लोग...

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  2. 'पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है .'
    - हाँ ,अब तो ऐसा ही लगता है कि साँस लेने को स्वच्छ हवा भी खरीदनी पड़ेगी !

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  3. पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
    भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
    कथ्य और कलात्मकता के स्तर पर बहतरीन ग़ज़ल मुहावरों का सजीव प्रयोग किया है आपने .मुबारक .

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  4. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा मंच-791:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है