खरगोश की उछाल
मृग की कुलांच
बाज़ की उड़ान
शावक की दहाड़
शबनम की चादर
गुलाब की महक
पीपल का पावित्र्य
तुलसी का आमृत्य
निम्बू की सनसनाहट
अशोक की लटपटाहट
_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय
अब तो
आदमी का ख़ून
बाज़ार की मंहगाई
खादी का भ्रष्टाचार
संसद का हंगामा
ग्लोबलवार्मिंग
प्रदूषण
और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर
दृष्टि जहाँ तक जाती है,
हलाहल है
इसलिए आज कविता नहीं,
कोलाहल है
हास्यकवि अलबेला खत्री |
wah....gazab ki tulnatmak kavita likhe hain.....
ReplyDeleteखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
ReplyDeleteजो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को
अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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