Thursday, March 15, 2012

इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है.........






खरगोश की उछाल

मृग की कुलांच

बाज़ की उड़ान

शावक की दहाड़

शबनम की चादर

गुलाब की महक

पीपल का पावित्र्य

तुलसी का आमृत्य

निम्बू की सनसनाहट

अशोक की लटपटाहट

_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय


अब तो

आदमी का ख़ून

बाज़ार की मंहगाई

खादी का भ्रष्टाचार

संसद का हंगामा

ग्लोबलवार्मिंग

प्रदूषण

और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर


दृष्टि जहाँ तक जाती है,

हलाहल है

इसलिए आज कविता नहीं,

कोलाहल है


हास्यकवि अलबेला खत्री
जय हिन्द !

2 comments:

  1. wah....gazab ki tulnatmak kavita likhe hain.....

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  2. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद
    नायेर ने दिया है... वेद जी को
    अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Also visit my blog post : खरगोश

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है