सियारी खाल की बदबू हवा से जान लेता हूं
सियासत वालों को मैं दूर से पहचान लेता हूँ
भुवन में हो कोई बाधा तो आए रोक ले मुझको
वो पूरा करके रहता हूं जो मन में ठान लेता हूं
मेरे गंगानगर में नहर है पंजाब से आती
इसी कारण मैं पीने से प्रथम जल छान लेता हूं
ये सब इक कर्ज़ अदाई है, न बेटा है, न भाई है
मगर तुम कह रहे हो तो चलो मैं मान लेता हूं
मैं अपने घर का चूल्हा अपने ईधन से जलाता हूं
न तो अनुदान मिलता है, न मैं ऐहसान लेता हूं
मेरा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-मुल्क़ लासानी है सच मानो
मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं
प्रिये तुम जा रही हो तो मेरे सब लाभ ले जाओ
मैं अपने सर पे 'अलबेला' सभी नुक़सान लेता हूं
हास्यकवि अलबेला खत्री दक्षिण गुजरात चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स -सूरत के अध्यक्ष से सम्मान स्वीकारते हुए |
जय हिन्द !
वाह! ज़बरदस्त सर जी!
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