Tuesday, January 24, 2012

कादा स्वभाव से कादा नहीं था और कादा होने का उसका इरादा नहीं था




आंगन की

तुलसी के

मुलायम-मुलायम पातों पर

शयनित

शीतल-सौम्य ओस कणिकाओं को

सड़क किनारे

गलीज़ गड्ढे में सड़ रही

कळकळे कादे की

कसैली और कुरंगी जल-बून्दों पर

व्यंग्यात्मक हँसी हँसते देख

जब मेघ का

वाष्पोत्सर्जित मन भर आया

तो सखा सूरज ने उसे समझाया



भाया,

धीरज रख,

बिफर मत


क्योंकि इन ओस कणिकाओं को

अभी भान नहीं है

इस सचाई का ज्ञान नहीं है

कि कादा स्वभाव से कादा नहीं था

और कादा होने का

उसका इरादा नहीं था

प्रारब्ध की ब्रह्मलिपि

यदि कादे में छिपा जल

पढ़ गया होता

तो वह भी

किसी तुलसी के पातों पर

चढ़ गया होता



ख़ैर..

इस दृश्य को भी बदलना है,

सृष्टि का चक्र अभी चलना है

मेरी लावा सी लपलपाती कलाओं से

झरती आग

शोष लेगी शीघ्र ही -

तुलसी को भी,

कादे को भी

चूंकि दोनों में से

किसी के पास नहीं है अमरपट्टा

इसलिए

दोनों को ही

त्याजनी होगी धरती

और मेरे ताप के परों पर बैठ कर

जब दोनों ही

निर्वसन होकर पहुंचेंगे तेरे पास

तो तू स्वयं देख लेना-

कोई फ़र्क नहीं होगा दोनों में

बल्कि

तू पहचान भी न पाएगा


कौन ओस ?

कौन कादा ?

- अलबेला खत्री

अमरावती में लायंस क्लब की  रीजनल कांफ्रेंस  का उदघाटन करते हुए  प्रमुख वक्ता  अलबेला खत्री, साथ में  डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ कासट तथा अन्य  पदाधिकारीगण


जय हिन्द !

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