Saturday, March 31, 2012

ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते........


 तेरी संगत
मेरी रंगत निखार देती है

पर तेरी मुहब्बत
अक्सर मुसीबत में डाल देती है

क्योंकि ज़माना
ढूंढता है बहाना क़त्ल करने का

हर तरफ़ धोखा
नहीं कोई मौका वस्ल करने का

अपनी हस्ती जुदा है
अपनी मस्ती जुदा है
अपनी बस्ती जुदा है

ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते
ये सागर नहीं जानते हैं, मीना नहीं जानते
ये ऐसे मयफ़रोश हैं जो पीना नहीं जानते


सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे

पहलू में थोड़ा सब्र-ओ-ईमान बाँध लो
सफर लम्बा है, थोड़ा सामान बाँध लो

ग़म जल पड़ेंगे
हम चल पड़ेंगे

चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे


जलगाँव हास्य कवि सम्मेलन में कल अलबेला खत्री की प्रस्तुति है ...सभी मित्र आमंत्रित हैं


जय हिन्द !

Monday, March 26, 2012

किसलिए आतंक है और मौत का सामान है, आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है


अदावत नहीं

दावत की बात कर


अलगाव की नहीं
लगाव की बात कर


नफ़रत नहीं
तू
उल्फ़त की बात कर

बात कर रूमानियत की
मैं सुनूंगा

बात कर इन्सानियत की
मैं सुनूंगा


मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें
रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें

किसने सिखलाया तुझे संहार कर !
कौन कहता है कि पैदा खार कर !

रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !


आ प्यार कर
आ प्यार कर
आ प्यार कर

मनुहार कर
मनुहार कर
मनुहार कर

सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी
ख़ूब  कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी

पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन
दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन

किसलिए आतंक है और मौत का सामान है
आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है

कर उजाला ज़िन्दगी में
दूर सब अन्धार कर !

बात मेरी मानले तू
जीत बाज़ी,हार कर !

प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !
प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !

- अलबेला खत्री

जय हिन्द !

Thursday, March 15, 2012

इसलिए आज कविता नहीं, कोलाहल है.........






खरगोश की उछाल

मृग की कुलांच

बाज़ की उड़ान

शावक की दहाड़

शबनम की चादर

गुलाब की महक

पीपल का पावित्र्य

तुलसी का आमृत्य

निम्बू की सनसनाहट

अशोक की लटपटाहट

_______ये सब अब कहाँ सूझते हैं कविता करते समय


अब तो

आदमी का ख़ून

बाज़ार की मंहगाई

खादी का भ्रष्टाचार

संसद का हंगामा

ग्लोबलवार्मिंग

प्रदूषण

और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर


दृष्टि जहाँ तक जाती है,

हलाहल है

इसलिए आज कविता नहीं,

कोलाहल है


हास्यकवि अलबेला खत्री
जय हिन्द !

Wednesday, March 14, 2012

लोग नमक घिसने लगते हैं.........





 रिश्ते जब रिसने लगते हैं

तो परिजन पिसने लगते हैं

मत दिखलाना घाव किसी को

लोग नमक घिसने लगते हैं



हास्यकवि अलबेला खत्री  फिल्म संगीतकार  राम लक्ष्मण  के साथ मुंबई में  गानों की रिकॉर्डिंग के अवसर पर
जय हिन्द !

Tuesday, March 13, 2012

सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान .........





 
आज मुझे सपने में आया सपना एक महान
सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान 

 
मैंने देखा पुलिसकर्मियों में विनम्र स्वभाव
मैंने देखा सस्ते होगये फल-सब्ज़ी के भाव

मैंने देखा रेलों में कोई धक्कम-पेल नहीं है

मैंने देखा किसी शहर में कोई जेल नहीं है

भ्रष्टाचारी लोग कर चुके ख़ुद ही आत्म-समर्पण

स्विस बैंकों से ला-ला कर धन किया देश को अर्पण

सोने के सिक्के चलते और चलें चांदी के नोट

युवकों ने चड्डी उतार कर, पहन लिए लंगोट

व्यसन और फ़ैशन से दूरी रखना मान लिया है

काला बाज़ारी नहीं करेंगे, सबने ठान लिया है

नहीं मिलावट मिली कहीं पर, शुद्ध है सब सामान
 

सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान


सिर्फ़ एक टी वी चैनल और सिर्फ़ एक अखबार

क्रिकेट मैच भी हो पाता है साल में बस इक बार

क्षण-क्षण का उपयोग हो रहा मानवता के हित में

अय्याशी और अनाचार अब नहीं किसी के चित में

काव्य-मंचों पर मौलिक कविताओं का युग आया है

साहित्य और संस्कृति का परचम घर-घर फहराया है

मल्लिकाओं ने साड़ी पहनने का ऐलान किया है

अमिताभ बच्चन ने ख़ुद को बूढ़ा मान लिया है

पेप्सी-कोक की जगह दूध के विज्ञापन दिखते हैं

सलीम-जावेद फिर से जोड़ी बन, फ़िल्में लिखते हैं

अब रोज़ाना लड़ते नहीं हैं शाहरुख और सलमान 

 सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान 
 

भ्रूणहत्याएं बन्द हो गईं, दहेज़ प्रथा भी बन्द

शोषण से हुई मुक्त नारियां, करती हैं आनन्द

आतंकवादी रक्तदान को लाइन में खड़े हुए हैं

चोरों ने चोरी छोड़ी, घर खुल्ले पड़े हुए हैं

मदिरा-गुटखा कम्पनियों पर लटक रहे हैं ताले

नदियाँ तो नदियाँ, शहरों में साफ़ हो गये नाले

चौबीस घंटे चालू रहता फैक्ट्रियों में काम

रंगदारी और लूटपाट का होगया काम तमाम

दुनिया भर ने फिर से माना भारत को उस्ताद

चारों तरफ़ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ, नहीं कहीं अवसाद

घुटनों के बल खड़ा हमारे आगे पाकिस्तान 

 सपने में देखा मैंने सपनों का हिन्दुस्तान 
 
__अलबेला खत्री

हास्यकवि व गीतकार अलबेला खत्री प्रख्यात फिल्म अभिनेता -निर्माता  स्व. दादा कोंडके  के साथ  मराठी फिल्म येऊ का घरात ? के हिंदी संस्करण  'चिट्ठी आई है'  की डबिंग के अवसर पर  एम्पायर स्टूडियो मुंबई में ....

जय हिन्द !

मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं





सियारी खाल की बदबू हवा से जान लेता हूं

सियासत वालों को मैं दूर से पहचान लेता हूँ


भुवन में हो कोई बाधा तो आए रोक ले मुझको

वो पूरा करके रहता हूं जो मन में ठान लेता हूं


मेरे गंगानगर में नहर है पंजाब से आती

इसी कारण मैं पीने से प्रथम जल छान लेता हूं


ये सब इक कर्ज़ अदाई है, न बेटा है, न भाई है

मगर तुम कह रहे हो तो चलो मैं मान लेता हूं


मैं अपने घर का चूल्हा अपने ईधन से जलाता हूं

न तो अनुदान मिलता है, न मैं ऐहसान लेता हूं


मेरा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-मुल्क़ लासानी है सच मानो

मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं


प्रिये तुम जा रही हो तो मेरे सब लाभ ले जाओ

मैं अपने सर पे 'अलबेला' सभी नुक़सान लेता हूं


हास्यकवि अलबेला खत्री दक्षिण गुजरात चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स -सूरत  के  अध्यक्ष से सम्मान स्वीकारते हुए

जय हिन्द !

Monday, March 12, 2012

यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं.............





नम्रता यदि ज्ञान से कुछ कम नहीं

तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं


सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के

वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं


जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं

वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं


इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम

यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं


आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो

आदमी भगवान से कुछ कम नहीं


काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है

वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं


आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं

यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं


hasyakavi albela khatri in mumbai



जय हिन्द !